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लेखनी कहानी -21-Jun-2022 नदी का किनारा

वो खुशनुमा सी शाम 
वो चांद की सरगोशियां 
वो झुका झुका सा आसमां 
और वो नदी का किनारा 

वो तेरा उड़ता आंचल 
गालों पे पड़ते तेरे डिंपल 
वो लरजती सी गोरी बांहें
छन छन करती तेरी पायल 

वो तेरी बिंदिया का सितारा 
वो तेरी लौंग का लश्कारा 
जुल्फों से टपकती नन्ही सी बूंदें 
तेरी आंखों में डूबा ये जहां सारा 

वो गुलाब से होठों की छुअन 
वो कदली सा चिकना बदन 
वो सांसों से छलकती तड़पन 
वो जीवन सा तेरा आलिंगन  

वो तेरा दबे पांव आना 
चुपके से आंखों पर हाथ रखना 
फिर उन्मुक्त हंसी हंसना 
और बात बात पर खिलखिलाना 

आईने की तरह दिखता चेहरा 
तेरी आंखों की वो गुस्ताखियां 
वो कातिल सी एक मुस्कान 
मुझे सब कुछ याद है, मेरी जान 

तू नहीं है आज , पर तेरी याद तो है 
लबों पे तेरे आने की एक फरियाद तो है 
मेरे दिल की पुकार ना सुन, कोई बात नहीं 
तुझे पुकारता वो नदी का किनारा तो है 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
21.6.22 


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1 Comments

Seema Priyadarshini sahay

22-Jun-2022 10:23 AM

अद्भुत👌👌

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